परोपकार का फल

तेज हवा चल रही थी। एक बूढ़े आदमी के सिर से टोपी उड़ गई और एक पेड़ की टहनी पर लटक गई। रास्ते पर आते-जाते हर आदमी से वह बूढ़ा आदमी मदद मांगने लगा। दूर से आता हुआ आयुष यह सब देख रहा था। वह बूढ़े आदमी की मदद करना चाहता था। वह टहनी से टोपी को उतारने की कोशिश करने लगा। बूढ़ा व्यक्ति अब भी राह चलते व्यक्तियों से मदद मांग रहा था। आयुष स्काउट गाइड का भी स्टूडेंट था। इसलिए उसने आसपास पड़ी सूखी घास इकट्ठा की और उससे लंबी और मजबूत रस्सी बनाई। रस्सी को गोल-गोल घुमाते हुए उसे पेड़ की टहनी पर डालना शुरू किया। टोपी उस रस्सी में फंस गई। उसकी काबिलियत देखकर बूढ़ा आदमी काफी खुश था। उसने आयूष को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करता हैं, भगवान उसकी सहायता करते हैं। यह सुनकर आयुष काफी भावुक हो गया। उसने उस बूढ़े आदमी का अभिवादन किया और संकल्प लिया कि वह अब ज्यादा से ज्यादा व्यक्तियों की सहायता करेगा।

अगले दिन स्कूल जाते समय उसने सड़क पर इधर-उधर भागते कुछ भूखे बच्चों को देखा। उससे रहा नहीं गया। उसने झट से अपना खाने का डिब्बा निकाला और उन भूखे बच्चों में बांट दिया। उस दिन भी सड़क के उस पार खड़ा टोपी वाला बूढ़ा आदमी आयुष को देख रहा था।

आयुष को पता चला कि उसके स्कूल में नए प्रधानाचार्य आए हैं। प्रत्येक छात्र उन्हें देखने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे था। आयुष भी उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। उन्हें देखकर सभी बच्चों को चाचा नेहरू की याद आ गई, लेकिन आयुष उनको देखकर आश्चर्यचकित रह गया। इसका कारण था कि वह कोई और व्यक्ति नहीं, वही टोपी वाला बूढ़ा आदमी था। प्रधानाचार्य ने आयुष को अपने पास बुलाया और प्रार्थना स्थल पर अध्यापकों और छात्रों के समक्ष उसे श्रेष्ठ नागरिक छात्र पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होंने सभी बच्चों को प्रेरणा देते हुए कहा- आयुष की तरह तुम सभी प्रत्येक नागरिक की मदद करो, तो तुम भी इस पुरस्कार के हकदार हो सकते हो। इस बात से सभी छात्रों ने प्रेरणा ली। सभी छात्रों ने यह पुरस्कार पाने के लिए संकल्प लिया।

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