बच्चों के लिए बदली जीवन शैली

पढ़ाई की स्पर्धा और मैदान से दूरी बना रही है बच्चों को बीमार। ऐसे में अभिभावक उन्हे फिट रखने के लिए ला रहे है जीवनशैली में बदलाव…

अधिकतर समय टीवी के सामने गुजारने वाली मिसेज भल्ला ने बैडमिंटन खरीदा है। घर में कार व बाइक होने के बाद भी सिन्हा दंपति साइकल खरीद लाए है। मिसेज खत्री अब सुबह पांच बजे उठकर वॉक के लिए निकल पड़ती है। मिसेज भल्ला का बैडमिंटन खरीदना या सिन्हा दंपति का साइकिल लाना महज उदाहरण है। शहर के बहुसंख्य अभिभावक व्यस्तता के बावजूद अपनी जीवनशैली बदल रहे है। इसकी वजह है हर हाल में बच्चों की फिटनेस बरकरार रखना। जंक फूड की आदत और स्कूलों में न के बराबर होने वाली फिजिकल एक्टीविटीज ने किशोरों की फिटनेस को बुरी तरह प्रभावित किया है। ऐसे में बच्चे न सिर्फ मोटापे के शिकार हो रहे है, बल्कि कई घातक बीमारियों की चपेट में भी आ रहे है।

कम हुआ टीवी देखना

स्वरूप नगर की देविका गुप्ता बताती है, बेटी सुगंधा की उम्र 13 वर्ष है, लेकिन उसका वजन 26 वर्ष की उम्र वालों के बराबर है। स्कूल और होमवर्क के कारण ऐसे खेलों से उसका जुड़ाव नहीं रहा जिनसे व्यायाम होता है। उसकी उम्र ने मेरी चिंता बढ़ाई और अब मैं बेटी के साथ नियमित बैडमिंटन खेलती हूं। उम्मीद है कि इससे उसमें व्यायाम की आदत विकसित हो और वह शारीरिक रूप से फिट हो जाए। मनोरंजन के लिए उसका टीवी देखना व वीडियो गेम खेलना अब बहुत कम करवा दिया है।

याद आए पुराने दिन

गलत खानपान, बेहद कम शारीरिक मशक्कत और स्कूलों में कड़ी प्रतिस्पर्धा का तनाव झेल रहे है मासूम। छोटी उम्र में वे न सिर्फ घातक बीमारियों के शिकार हो रहे है, बल्कि तेजी से वजन भी बढ़ा रहे है। नेहरू नगर की मुक्ता मुखर्जी बताती है, मुझे बचपना याद आ रहा है। वजह है इस उम्र में आकर साइकिल खरीदना। बेटी दीपा अभी 15 वर्ष की है, लेकिन मोटापे के कारण वह मुझसे भी बड़ी लगती है। इतनी छोटी उम्र में उसे डायबिटीज और रक्तचाप की समस्या हो गई है। अब हम दोनों सुबह पार्क में साइकिलिंग के लिए पहुंचते है। इससे हम दोनों का ही व्यायाम हो रहा है। हां, यह अलग बात है कि इसके लिए मुझे अपनी दिनचर्या में थोड़ा बदलाव लाना पड़ा है।

संडे एक्सरसाइज डे

विनोवा नगर की रेखा भारती बताती है, कामकाजी होने के कारण हम लोग बच्चों को बहुत कम समय दे पाते है, लेकिन अब हर दिन शाम को टेनिस खेलने का नियम बनाया है, जिससे बच्चों का मनोरंजन के साथ व्यायाम हो जाए। अगर मैं उनके साथ नहीं खेलती तो वे भी खेलने से कतराते है, इसलिए उनके साथ मैं भी खेलती हूं। अब तो संडे को मैं बच्चों को पार्क ले जाती हूं जिससे वे आउटडोर गेम्स का भी मजा ले सकें।

छोटी उम्र बड़ी बीमारी

चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. रत्ना त्रिपाठी कहती है, हमारे पास ऐसे बच्चे बड़ी संख्या में आते है जो खानापान की वजह से अपनी उम्र के हिसाब से बहुत अधिक मोटापे का शिकार होने के साथ ही कमजोरी और पेट की बीमारियों से पीड़ित होते है। बाहर जाकर रेस्त्रां में खाना और पसीना बहाने से बचना हमारी जीवन शैली का हिस्सा बन गया है। बाहर के खाने से बच्चों को स्वाद तो मिलता है, लेकिन सेहत नहीं बनती।

कैंटीन की लत

फिटनेस एक्सपर्ट पूर्णिमा सिंह कहती है, अधिकतर स्कूलों की कैंटीन में खाने के नाम पर फास्ट फूड या जंक फूड ही मिलता है। बच्चों को कैंटीन में खाने के लिए पैसे देने के बजाय अच्छा रहेगा कि लंच बॉक्स में घर का बना खाना रखा जाए। उनमें कैंटीन के खाने की लत न पड़ने दें। कैंटीन में खाने का मौका सप्ताह में एक बार ही दें। शेष दिनों में लंच बॉक्स में घर का बना खाना रखें।

क्यों मुरीद है बच्चे

समाजशास्त्री आरती बाजपेयी कहती है, बाजार की नमकीन, जंक फूड या तले भुने खाने में नमक, चीनी व वसा का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। इन चीजों से बनने वाले किसी भी खाने का स्वाद बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी दीवाना बना देता है। फिल्म स्टारों द्वारा टी वी पर इस तरह के खान-पान के विज्ञापन भी खूब दिखाए जाते है जो बच्चों को इन खानों के प्रति आकर्षित करते है। ऐसे में अपने साथियों को खाते देख बच्चे इन्हे बिना खाए नहीं रह पाते।

पैरेट्स बदलें जीवनशैली

सरस्वती विद्यामंदिर इंटर कालेज दामोदर नगर के प्रिंसिपल नवीन अवस्थी कहते है, बच्चों को फिट रखने के लिए पहला कदम पैरेट्स को उठाना पड़ेगा। अच्छा रहेगा कि वे समय निकालकर बच्चों के साथ उन एक्टिविटीज में शामिल हों जिनसे व्यायाम होता है। होटल में डिनर कराने या नाश्ते में नूडल्स या रेडी टू ईट फूड परोसने की बजाय उनकी जुबां पर घर के बने संतुलित आहार का स्वाद चढ़ाएं। यह तभी संभव है जब माता-पिता खुद में बदलाव लाएंगे। स्कूलों में फिजिकल एक्टीविटी बहुत कम हुई है, इसलिए घर में उन्हे खेलने का मौका जरूर दें।

This post has already been read 8842 times!

Sharing this

Related posts