अयोध्या मामला: सुनवाई का 19वां दिन, मुस्लिम पक्ष की दलीलें जारी

नई दिल्ली। अयोध्या मामले को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में 19वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई। मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की। कल गुरुवार को भी धवन की ओर से बहस जारी रहेगी।

राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच को बताया कि मोहम्मद हासिम के बेटे और पक्षकार इकबाल अंसारी पर एक शूटर ने उन पर हमला किया है। अंसारी को पुलिस ने हमलावर से बचाया। उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता कि इस हमले की जांच कराए जाने की जरूरत है या नहीं, लेकिन इस घटना पर कोर्ट की सामान्य टिप्पणी भी मायने रखती है। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि हम इसे देखेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे।

उल्लेखनीय है कि एक शूटर ने 3 सितंबर को इकबाल अंसारी के घर में घुसकर हमला किया और अयोध्या मामले में दावा वापस लेने के लिए धमकाया। धवन ने कहा कि हम निर्मोही अखाड़ा के सेवादार के अधिकार को नहीं छीन रहे हैं। जस्टिस अशोक भूषण ने धवन से पूछा कि इसका मतलब है कि आप स्वीकार कर रहे हैं कि वह बाहरी आंगन में प्रार्थना कर रहे थे। धवन ने कहा कि 1885 में उन्हीने अंदरूनी हिस्से पर अधिकार की बात कही और पूजा के अधिकार की बात कही, सेवादार होना उनकी न्यायिक स्थिति है, निर्मोही अखाड़ा, प्रबंधन अधिकारों की मांग कर रहे हैं, वह प्रबंधन अधिकारों के हकदार हैं।

धवन ने कहा कि देवता के अधिकार सीमित हैं। अखाड़ा ने 1885 में सेवादार का दावा दायर किया, लेकिन उपाधित्व का दावा नहीं किया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सेवादार का अधिकार देवता के प्रबंधन के बारे में है, लेकिन देवता का अधिकार अल्पविकसित है। जस्टिस बोब्डे ने कहा कि आप कह रहे हैं कि कुरान का कानून मस्जिद पर लागू नहीं होगा। धवन ने कहा कि कुरान के कानून को भारतीय कानून ने माना है। आप कुरान के कानून की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। राजीव धवन ने कहा कि बाहरी अहाता तो शुरू से निर्मोही अखाड़े के कब्जे में रहा है। झगड़ा तो आंतरिक अहाते को लेकर है, जिस पर जबरन कब्ज़ा किया गया। जिस ढांचे को तोड़ा गया, वहां पहले मन्दिर होने के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले।

हाई कोर्ट के फैसले के हवाले से राजीव धवन ने कहा कि बीच वाले गुम्बद के नीचे जबरन रामलला की मूर्ति रखकर विवाद खड़ा किया गया, क्योंकि उन्होंने इस बारे में एक कहानी भी गढ़ ली। धवन ने कहा कि जस्टिस अग्रवाल ने भी साथी जजों की तरह मुकदमों को मेंटनेबल नहीं माना था। उसके अलग-अलग कई कारण बताए थे।

राजीव धवन ने जस्टिस मुखर्जी के फैसले का हवाले देते हुए कहा कि बौद्ध काल से मूर्तियों की पूजा का प्रचलन ज़्यादा बढ़ा। मंदिर कैसे न्यायिक व्यक्ति हो सकता है जब वो खुद ही किसी का बनाया और समर्पित किया हुआ है। उन्होंने कहा कि देवता किसी सम्पत्ति का स्वामी नहीं हो सकता, ये सब कल्पना है। देवता उस सम्पत्ति का सुख नहीं ले सकता, यह तो उसके ट्रस्टी ही करते हैं।

राजीव धवन ने कहा कि निर्मोही अखाड़े के महंत रघुबर दास ने 1885 में स्वीकार किया है कि उनका बाहरी अहाते में पूजा का अधिकार था। धवन ने हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पक्षकारों द्वारा अपने दावे के समर्थन में पेश किए गए दस्तावेज़ों पर बहस की। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में पक्षकारों में से निर्मोही अखाड़े और मुस्लिम पक्षकारों ने मालिकाना हक को लेकर 24 दस्तावेज़ दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई दस्तावेज़ ऐसे भी हैं जो पेश तो किए गए लेकिन उन पर भरोसा नहीं किया गया। कई दस्तावेज़ पेश नहीं किया गया। धवन ने कहा कि जब निर्मोही अखाड़ा ने कब्जा किया, उसके बाद प्रशासन द्वारा यह प्रोजेक्ट किया गया कि कब्जा अखाड़ा का है, जबकि इससे पहले मुस्लिम लोग नमाज अदा करने जाते थे।

धवन ने कहा कि पी. कारनेगी ने अपने विवरण में यह लिखा कि संरचना में स्तंभ बौद्ध स्तंभों के समान थे। हिन्दुओं और मुसलमानों की संयुक्त सम्पत्ति का भी उल्लेख किया गया था, जिससे स्पष्ट है कि मुस्लिम मस्जिद के आंतरिक कक्ष में नमाज पढ़ते थे और हिन्दू बाहर पूजा करते थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी के गजेटियर में भी कहा गया है कि वहां मस्जिद थी, जिसे बाबर ने बनाया था और वहीं हिन्दू राम का जन्मस्थान मानते हैं। कार्नेगी के स्केच और वर्णन भी बाबर के बनाई मस्जिद की बात कहते हैं।

धवन ने कहा कि शिलाओं पर लिखे आलेख पर कोई शक नहीं किया जा सकता। गजेटियर में दर्ज है कि जन्मस्थान के पास मस्जिद थी, वहां निर्मोही अखाड़ा ने चबूतरा बनाया।

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