डॉ एस के निराला
द्वारिका अस्पताल
महिलौग (रांची)
किसी के आँखों से आंसू देखकर प्राय यह समझा जाता है कि सामने वाला भारी तकलीफ मे है. दूसरी ओर आँखों मे आँसू की एक पर्याप्त परत देखकर नेत्र रोग चिकित्सक खुश होते है। वे अनुमान लगाते है कि मरीज का आँख स्वस्थ और आरामदायक अवस्था मे है। क्योकि आंसू आंखों को 24 घन्टे पर्याप्त लुब्रिकेसन और नमी देता रहता है।
65 वर्ष के बुजुर्ग, मोतियाबिंद और लेजर सर्जरी के पश्चात आँखों के आंसू बनना कम हो जाता है। ऑंखें सूख जाती है। ऐसा गर्भावस्था, अधिक जुकाम और एलर्जी की दवा लेने के कारण और कम्पयूटर पर दिन रात काम करने वालो के साथ भी होता है। फैशन मे आकर आई लिड तथा पलको को रॅगने वाली महिलाओ को ऐसे लक्षण देखने को मिलते है।
आँखों मे आंसू का कम बनने के बाद आँखों मे तेज जलन, खुजली और ऑंखें लाल हो जाती है। ऐसा लगता है कि आँखों को नाखून से खरोंच दे। इन सभी लक्षणो को ड्रायनेस ऑफ़ आई सिनड्राम कहते है। ऐसे लक्षणो मे जेनटामायसिन,सिप्रो या किसी तरह का एंटीबायोटिक के आइ ड्राप बिल्कुल नही दिया जाता है।विटामिन ए और मलटीविटामिन लेना पैसे की बर्बादी होता है। काॅमन सेन्स के आधार पर कुछ लोग खुजली मे आराम देने के हिसाब से एलेग्रा,सेट्रीजिन या एवील देकर और मुसिबत बुला लेते है। जो भी थोड़ा बहुत आंसू बन रहे होते है एनटी एलर्जी उन को भी बनने से रोक देता है।।जिसके परिणाम से मरीज आखो के खुजली से और परेशान होने लगता है।गुलाब जल और त्रिफला पानी से आॅखो को धोने का कोई फायदा नही होता है।
ड्रायनेश ऑफ़ आई का ईलाज बिलकुल अलग तरह की दवा से होती है। इसमे आर्टिफिशियल यानी कृत्रिम आंसू को दिन मे तीन से चार बार डाला जाता है। ऐसे कृत्रिम आंसू मिथाइल सेलुलोज से बनते है और आई ड्राप के रुप मे दवा दूकानो मे मिलते है। अच्छे ब्राँण्ड के आइसक्रीम, टूथपेस्ट और कबजियत की दवा मे भी मिथाइल सेलुलोज का प्रयोग होता है। इससे चिकनाहट और नमी पैदा होती है। भारत मे बनने वाले ऐसै कृत्रिम आंसू सस्ते जरुर होते है किन्तु बूढे और मोतियाबिंद वाले ड्रायनेस पर इनका प्रभाव लम्बा नही होता है। जबतक ड्राप लेते रहेगे तो आराम रहेगा किन्तु दवा बन्द करते खुजली और जलन फिर शुरु हो जाता है। बूढे लोगो मे 24 घन्टे आंसू बनता रहे डाक्टर के लिए टेड़ी खीर जैसा होता है क्योकि 70 वर्ष के बाद बूढ़ी ऑंखें पथरा सी जाती है। इसलिए बूढ़े लोगो को हमेशा कृत्रिम आंसू का प्रयोग करना पड़ता है। किन्तु पाॅलीइथलिन और गलाइकोल से बने कृत्रिम आंसू के आई ड्राप स्थाई रूप से आंसू बनने की प्रक्रिया शुरु कर देते है। ये थोड़े मँहगे होते है क्योकि विदेश से आयात कर भारत मे उपलब्ध कराया जाता है।
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