(लेखक-सिद्वार्थ शंकर)
अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के बाद यह तो साबित हो गया है कि उसमें अकेले इतनी ताकत नहीं थी कि वह देखते-देखते देश पर कब्जा करने की सोचता। तालिबान की इस मंशा को पाकिस्तान ने हवा दी और आगे बढऩे का हौसला दिया। पाकिस्तान को लगता है कि अफगानिस्तान में तालिबान को काबिज कर वह भारत के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारी पड़ सकता है। कुछ लोग इस राय से जुदा होंगे, लेकिन आज अफगानिस्तान के हालात पर पाकिस्तान में जिस तरह से खुशी जताई जा रही है, वह यह बताने के लिए काफी है कि पड़ोसी मुल्क में अब इतनी कुव्वत नहीं रह गई है कि आमने-सामने मुकाबला कर सके।
खैर, तालिबान को प्रश्रय देकर पाकिस्तान अपने मंसूबे में सफल हो गया है तो इससे भारत की चिंता नहीं बढ़ी, ऐसा मानना बेमानी होगा। अफगानिस्तान के हालात पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने जो चिंताएं रखी हैं, उनका सरोकार सभी देशों से है। ज्यादातर देश किसी न किसी रूप में आतंकवाद और मुल्कों के टकराव से होने वाली अशांति के खतरों से जूझ रहे हैं। भारत ने साफ कहा है कि अफगानिस्तान के हालात न सिर्फ क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी गंभीर चुनौती बन गए हैं।
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भारत ने एक फिर दोहराया है कि अब किसी भी तरह से दुनिया से आतंकवाद का खात्मा करना होगा। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सुरक्षा परिषद के विशेष सत्र में पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन देशों को आड़े हाथों लिया जिनका मूल काम आतंकवाद को बढ़ावा देना है। अफगानिस्तान में सत्ता पलट के घटनाक्रम से सबसे ज्यादा जो देश प्रभावित हुए हैं उनमें भारत भी है। इसलिए अब सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत कुछ रहा है तो उसकी अहमियत ज्यादा ही है। भारत ने जिस सबसे गंभीर मुद्दे पर वैश्विक समुदाय का ध्यान खींचा है वह आतंकी संगठनों को बढ़ावा देने वाले देशों को लेकर है। सवाल है कि इन देशों से निपटने की रणनीति क्या बने?
अफगानिस्तान के हालात बता रहे हैं कि आतंकवाद से निपटने में अगर वैश्विक समुदाय ने इच्छाशक्ति नहीं दिखाई तो भविष्य में हालात और बदतर होते चले जाएंगे। दूसरे और देश भी आतंकवाद की जद में आते जाएंगे। गंभीर होते जा रहे हालात में भारत ने यह भी दोहराया है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों पर कार्रवाई के लिए बनाए गए वित्तीय कार्रवाई कार्यबल को और सशक्त बनाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि इस बल ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाल रखा है। यह तो पूरी दुनिया जान रही है कि दूसरे देशों की तरह भारत भी लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद की मार झेल रहा है। अब तक अमेरिका के साथ भारत भी यही कहता रहा है कि पाकिस्तान आतंकियों के प्रशिक्षण का वैश्विक केंद्र है।
वैश्विक अनुभव भी यही बता रहा है कि अफगनिस्तान में तालिबान को सत्ता तक पहुंचाने में पाकिस्तान की भूमिका भी कम बड़ी नहीं रही है। कहा जाता है कि उसने तालिबान के लिए लड़ाके तैयार किए और सैन्य मदद भी दी। ढाई दशक पहले जब तालिबान ने सत्ता पर कब्जा किया था तब भी उसे पाकिस्तान ने समर्थन दिया था। आज भी पाकिस्तान का तालिबान को खुला समर्थन है।
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लेकिन ज्यादा चिंता की बात तो यह है कि अबकी बार चीन, रूस, बांग्लादेश जैसे कई और मुल्क भी तालिबान को समर्थन देने से परहेज नहीं कर रहे। ऐसे में तालिबान की ताकत को बढऩे से रोक पाना इतना आसान नहीं है। जहां तक सवाल है भारत का, तो तालिबान वही करेगा जो पाकिस्तान चाहेगा। जैश और लश्कर जैसे संगठन भारत के खिलाफ गतिविधियां अब तेज कर सकते हैं।
तालिबान ने बिना खून-खराबे के जिस आसानी से अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया, उससे अमेरिका भी कम सकते में नहीं होगा। कुल मिला कर हालात इतने जटिल हो गए हैं कि आतंकी देशों पर लगाम लगाने और उन्हें साधने के लिए अब कूटनीतिक उपायों के आसार बढ़ चले हैं। भारत और अमेरिका जैसे देशों के प्रयास भी इसी रुझान का संकेत दे रहे हैं।
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