’75 पार’ के बाद ’65 पार’ का नारा भी हुआ धराशायी

-निर्मल रानी-

देश के सभी राज्यों में भगवा परचम लहराने की लालसा पाले भारतीय जनता पार्टी को पिछले दिनों उस समय एक और बड़ा झटका लगा जब भाजपा शासित एक और राज्य, झारखंड की सत्ता उसके हाथों से निकल गयी और अपने सहयोगी दलों के साथ वही कांग्रेस पार्टी फिर सत्ता में आ गयी जिसे लेकर भाजपा पूरे अहंकार के साथ ‘कांग्रेस मुक्त भारत ‘बनाने का दावा ठोकती रही है। परन्तु हक़ीक़त तो यह है कि गत दो वर्षों के दौरान ही भारतीय जनता पार्टी अथवा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने सात राज्यों में सत्ता गँवाई है जबकि केवल चार राज्यों में ही सत्ता हासिल की है। इन चार राज्यों में भी मिज़ोरम,त्रिपुरा व मेघालय जैसे तीन छोटे राज्य शामिल हैं जबकि केवल कर्नाटक राज्य की गिनती ही बड़े राज्यों में की जा सकती है। कर्नाटक में भी सत्ता के लिए भाजपा को कितनी तिकड़मबाज़ी करनी पड़ी और कैसे सत्ता हासिल की यह भी पूरा देश जानता है। हरियाणा में भी किस प्रकार अपनी धुर विरोधी जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर भाजपा ने सत्ता में वापसी की यह भी सभी जानते हैं। झारखण्ड वही राज्य है जहाँ गत 6 वर्षों के दौरान भीड़ द्वारा हत्या किये जाने अर्थात मॉब लिंचिंग की सबसे अधिक घटनाएं हुई हैं। यही वह राज्य भी है जहाँ भाजपा की मोदी सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रहे जयंत सिन्हा झारखंड राज्य के ही रामगढ़ क्षेत्र में हुई एक मॉब लिंचिंग की घटना के हत्यारे अभियुक्तों के गले में माला डालकर उन्हें सम्मानित करते व उनके साथ फ़ोटो खिंचाते नज़र आए थे। ग़ौर तलब है कि रामगढ़ में अलीमुद्दीन अंसारी नाम के एक युवक को कथित गौरक्षकों ने उसकी वैन से खींचकर बहार निकाला और पीट पीटकर उसे मार डाला था। इस मामले की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित हुई थी जिसने 11 अभियुक्तों को दोषी माना और उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई। अभियुक्तों में स्थानीय बीजेपी नेता नित्यानंद महतो भी शामिल था। इन्हीं ‘हत्यारे सेनानियों ‘ के साथ भाजपा के केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा की वह फ़ोटो वॉयरल हुई थी जिसमें वे बड़े गर्व के साथ उन्हें मालाएं पहना रहे हैं व हत्यारों के साथ फ़ोटो सेशन करवा रहे हैं। भाजपा को सत्ता से हटाने वाला झारखण्ड वही राज्य है जहाँ राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान ही पाकुड़ क्षेत्र में हुई एक जनसभा को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि 4 महीने के अंदर अयोध्या में राम मंदिर बनने जा रहा है। शाह ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ गया है और चार माह के अंदर आसमान को छूता हुआ प्रभु राम का मंदिर अयोध्या में बनने जा रहा है। इसी सन्दर्भ में उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर प्रहार करते हुए यह भी कहा था कि कांग्रेस न विकास कर सकती है, न देश को सुरक्षित कर सकती है और न देश की जनता की जन भावनाओं का सम्मान कर सकती है। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने अपने विपक्षियों की तुलना मीर जाफ़र से भी की थी। शाह ने झारखण्ड में कथित रूप से धर्म परिवर्तन रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार की प्रशंसा भी की थी। परन्तु यह सारे के सारे साम्प्रदायिक व भावनात्मक मुद्दे धरे के धरे रह गए और भाजपा की रघुबर दास सरकार अब की बार 65 पार के लक्ष्य तक पहुंचना तो दूर राज्य में कुल विधान सभा की आधी सीटें भी हासिल नहीं कर पायी। उधर ठीक इसके विपरीत भाजपा को हराकर सत्ता में आया झारखंड मुक्ति मोर्चा+कांग्रेस+राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन स्थानीय मुद्दों की बात करता नज़र आया। राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो मुख्यमंत्री रघुबर दास भी संभवतः पार्टी के शीर्ष नेताओं से ही ‘प्रेरित’ होकर अत्याधिक अहंकारी हो गए थे। भाजपा के ही राज्य के दूसरे बड़े नेता रहे सरयू राय ने कई बार पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर भी इस विषय को उठाया परन्तु पार्टी नेतृत्व ने रघुबरदास को समझाने के बजाए उल्टे उनकी पीठ थपथपा कर गोया अहंकारी बने रहने का ही ‘शुभाशीष’ दिया। नतीजतन सरयू राय को भाजपा छोड़ कर रघुबर दास के विरुद्ध चुनाव लड़ना पड़ा और कुल मिलाकर पार्टी को राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी। मॉब लिंचिंग को लेकर राज्य की हो रही बदनामी,बेरोज़गारी,मंहगाई तथा आदिवासियों की उपेक्षा आदि भी रघुबर सरकार के विरोध का कारण बने। गत पांच वर्षों में झारखण्ड जहाँ देश में सब से अधिक होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाओं के लिए जाना गया वहीँ इसी राज्य में गत पांच वर्षों में कथित तौर पर भुखमरी से भी 22 मौतें हुईं। इतनी बड़ी संख्या में एक ही राज्य में भूख के चलते लोगों विशेषकर बच्चों का मौत को गले लगाना सरकार के विकास के सभी दावों की पोल खोलने के लिए काफ़ी था। वैसे भी भाजपा ने महाराष्ट्र व हरियाणा की ही तरह झारखण्ड में भी ग़ैर आदिवासी मुख्य मंत्री बनाने का एक नया प्रयोग किया था जो पूरी तरह असफल साबित हुआ।भाजपा महाराष्ट्र में भी ग़ैर मराठा व हरियाणा में ग़ैर जाट मुख्यमंत्री बनाने के प्रयोग कर चुकी है। इसके नतीजे भी पार्टी को भुगतने पड़े हैं। जिस एन डी ए + भाजपा का शासन देश की लगभग 72 प्रतिशत आबादी पर था, गत दो वर्षों में ही अब वह 42 प्रतिशत तक सिमट कर रह गया है। देश की जनता अब बख़ूबी समझ चुकी है कि राम मंदिर निर्माण के संबंध में सर्वोच्च न्यायलय ने अपना फ़ैसला सुनाया है न कि मोदी सरकार ने संसद में क़ानून बना कर मंदिर निर्माण संबंधी बाधाओं को दूर किया है। अतः मंदिर निर्माण को लेकर अमित शाह की दहाड़ और मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश भी झारखंडवासियों के गले से नहीं उतरी। बहरहाल गत एक वर्ष के भीतर पांच राज्यों में मुंह की खाने के बाद नरेंद्र मोदी की अजेय समझे जाने वाली छवि अब लगातार धूमिल पड़ती जा रही है। इतना ही नहीं बल्कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जिन्हें मीडिया ने ‘राजनीति का चाणक्य’ की उपाधि से नवाज़ा था वह उपाधि भी अब छिन चुकी है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जनता अब झूठे वादों, अहंकार, समाज को विभाजित करने के प्रयासों, मंहगाई, झूठ और फ़रेब तथा बेरोज़गारी से त्रस्त हो चुकी है और वह केवल लोकहितकारी व जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर ही मतदान करना चाहती है। महाराष्ट्र,हरियाणा से लेकर झारखण्ड तक हुए राज्य विधानसभाओं के चुनाव और हरियाणा में ’75 पार’ के बाद झारखण्ड में ’65 पार’ के नारे का धराशायी होना तो कम से कम हमें ऐसे ही संकेत दे रहे हैं।

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