वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में अच्छी किताब (पुस्तक समीक्षा)

-फ़ज़ल इमाम मल्लिक-

अंबरीश मिश्र इंडियन आयल में कार्यरत हैं। हाल ही में उनकी एक पुस्तक पढ़ने का इत्तफ़ाक़ हुआ। साहित्य में उनका नाम बहुत जाना-पहचाना नहीं है। उनकी रचनाएं पहले कभी कहीं पढ़ी नहीं न ही नजर से गुज़रीं। हो सकता है कि पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहीं हों लेकिन उनकी रचनात्मकता से कम से कम मेरा साबक़ा नहीं पड़ा था। इंडियन आयल में कार्यरत छायाकर मित्र एन. शिवकुमार ने मुझे यह अंबरीश कुमार के संस्मरणों का संग्रह ‘तेल अनुसंधान सुगंध’ भेजा था। पुस्तक के नाम ने बहुत ज्यादा पढ़ने के लिए उत्साहित नहीं किया और काफी दिनों तक यूं ही यह पुस्तक पड़ी रही। लेकिन एक दिन जब इसे उलट-पलट कर देखा तो इसके आलेखों ने मेरी सोच को बदला। आलेखों की भाषा और प्रवाह ने प्रभावित किया। यह देख कर अच्छा लगा कि हिंदी में इस तरह की पुस्तकों का प्रकाशन इंडियन आयल जैसी कंपनी ने किया है। नहीं तो आमतौर पर साहित्य की इस तरह की पुस्तकों के प्रकाशन को लेकर सजगता नहीं है। आमतौर पर सिर्फ समाचार बुलेटिन का प्रकाशन कर सार्वजनिक उपक्रम अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर लेते थे। राजभाषा कार्यान्वयन समिति के उपमहाप्रबंधक व अध्यक्ष एसके सिंहल ने भी इसका उल्लेख ‘आभार’ शीर्षक के तहत किया है। अपनी संक्षिप्त टिप्पणी में उन्होंने जो जानकारी दी है उससे हम जैसे लोगों की छाती जरूर चौड़ी होगी। उन्होंने लिखा है कि कंपनी के वैज्ञानिक, इंजीनियर और दूसरे कर्मचारी तकनीकी काम के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी समय निकाल कर अपने अंतर्मन को आलोकित करने का प्रयास करते हैं। सिंहल ने लिखा है कि इंडियन आयल अनुसंधान व विकास केंद्र प्रबंधन ने इस पुस्तक के प्रकाशन की इजाजत देकर हिंदी लेखन को बढ़ावा दिया है। किताब पढ़ते हुए इसका अहसास बार-बार होता है। अंबरीश कुमार के आलेखों की भाषा में प्रवाह है। सहज और सरल भाषा में उन्होंने बेहतरीन संस्मरण लिखे हैं। इनमें यात्रा संस्मरण भी है और लोगों से जुड़े कि़स्से भी। इन कि़स्सों में जीवन के कई-कई रंग दिखाई देते हैं। हिमालय से जुड़ी बातें हों या मैजान राइसा की जि़क्र, वे बहुत ही आत्मीयता से पाठकों को अपने साथ जोड़ते हैं। ‘टोना टोटका’ ‘संध्या छाया’ ‘आशीर्वाद’ ‘चमड़े का बैग’ ‘अपराध बोध’ ‘दुख का सुख’ ‘अपना सा’ में जि़ंदगी के कई शेड्स दिखाई देते हैं। पुस्तक के अंत में एसके सिंहल के यात्रा-संस्मरण के अलावा गंगा शंकर मिश्र, राम मोहन ठाकुर, त्रिलोक सिंह, गुलशन बालानी और सुधीर कुमार पांडेय की कविताएं भी शामिल की गई हैं। अदालत के पंडेः (प्रकाशकः दलित साहित्य व सांस्कृतिक अकादमी, 4, शास्त्री नगर, हरिद्वार रोड, निकट रिस्पना पुल, देहरादून) कवि-कथाकार सुनील कुमार के नाटकों का संग्रह है। सुनील कुमार पेशे से वकील हैं इसलिए वे अदालत की बारिकियों को जानते तो हैं ही, उसकी पेचीदगियों को भी बेहतर तरीक़े से समझते हैं। अपने नाटकों में भ्रष्ट तंत्र को उजागर तो उन्होंने किया ही है, अदालतों में व्याप्त भ्रष्टाचार को बहुत ही हिम्मत और साफ़गोई के साथ पाठकों के सामने रखा है। अपने पात्रों के माध्यम से उन्होंने उस सच को उघाड़ा है जो हम आए-दिन कोर्ट-कचहरियों में देखते हैं। जज, पेशकार, अहलकार, सरकारी वकील फूलमती, अर्दली जैसे चरित्रों के ज़रिए उन्होंने देश की न्याय व्यवस्था पर चोट की है। अपने नाटकों में सुनील कुमार बहुत ही बेबाकी के साथ भ्रष्टाचार, रिश्वतख़ोरी, चोरबाजारी और बेईमानी की बात करते हैं। इन नाटकों का मंचन होना चाहिए।

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