प्रह्लाद के गुरु का साधना-स्थल

पूरे देश में महादेव के नौ नाथ की उत्पत्ति-कथा और माहात्म्य बड़ी श्रद्धा से कहे-सुने जाते हैं। ऐसा ही एक शिवालय बिहार के गया क्षेत्र के फतेहपुर अंचल में है, जिसे संडेश्वर नाथ महादेव के नाम से जाना जाता है और उसकी गिनती मगध के नौ नाथों में पहले स्थान पर की जाती है। प्राचीन मगध राज्य की प्रारंभिक राजधानी राजगीर से चार कोस दक्षिण और मोक्ष नगरी गया से तीन कोस पूरब में ढाढर नदी के किनारे स्थित बाबा संडेश्वर नाथ का यह स्थान देश के नौ नाथ मंदिरों में गिना जाता है। कहा जाता है कि दैव योग से भक्त प्रह्लाद के गुरु संडामर्क ऋषि को ढाढर नदी के किनारे इस अरण्य भूमि का बोध हुआ, उन्होंने यहीं शिव-अर्चना शुरू कर दी। उसी रात उन्हें इस भूमि में नीचे दबे शिवलिंग का बोध हुआ, जिसका उन्होंने उद्धार किया। संडामर्क ऋषि के कारण ही इसकी ख्याति संडेश्वर के रूप में हुई। मध्यकाल में इस मंदिर के उद्धारक के रूप में पहले कोल्हराज (कोल राजा) और वभनसुब्बा राजा का नाम मिलता है, जो स्थानीय शासक थे। एक किसान नीरु महतो के गाय की कथा भी बाबा के इस धाम से जुड़ी है। कहा जाता है कि नीरु महतो की एक गाय ने अकारण दूध देना बंद कर दिया, तब नीरु एक दिन उसके पीछे-पीछे जंगल में जाने लगा। वहां जाकर उसने देखा कि गाय स्वतः एक स्थान पर अपना दूध अर्पित कर रही है। हर रोज इस कर्म को देख कर उसे धरती के नीचे कुछ होने का आभास हुआ। नीरु ने वहीं की भूमि को साफ कर देखा तो हैरान रह गया। नीचे एक चमकदार अनगढ़ पत्थर विराजमान था। उसके बाद नीरु ने एक विशाल यज्ञ कर उस स्थान की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया। मंदिर क्षेत्र के पास ही नीरु महतो की स्मृति का गवाह नीरौर गांव है। 16वीं शताब्दी के अंत में एक भक्त चिंरजीवी लाल ने एक स्वप्न के बाद इस मंदिर का नवनिर्माण पुराने ढांचे पर ही कराया। मंदिर में बाबा का लिंग धरती से पांच फीट नीचे विराजमान है। मंदिर के ठीक बगल में स्थित संरचनाएं इसके पुरातात्त्विक महत्व को दर्शाती हैं। मंदिर के गर्भ-गृह में गणेश, उमाशंकर, लक्ष्मी-विष्णु, सूर्य और भैरव का विग्रह है। ढाढर नदी पर पुल बन जाने से अब यहां आना-जाना आसान हो गया है। मंदिर के पास ही एक विशाल अतिथिशाला बनाई गई है। ऐसे तो यहां लोग सालों भर आते हैं, लेकिन शिवरात्रि, सावन और वसंत पंचमी में यहां लगने वाले मेले में दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग शरीक होते हैं।

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