गाथाओं, स्मारकों व मंदिरों का शहर हैं हस्तिनापुर

हस्तिनापुर, उत्तर प्रदेश राज्य में मेरठ शहर के नजदीक, गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। हस्तिनापुर शहर के इतिहास की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हैं और महाकाव्यों के अनुसार, हस्तिनापुर, कौरवों की राजधानी हुआ करती थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां पांडवों और कौरवों के मध्य होने वाला महान युद्ध, महाभारत हुआ था। इस युद्ध में पांडव जीत गए थे और उन्होंने अगले 36 सालों तक हस्तिनापुर पर राज किया था, जब तक कलयुग की शुरुआत नहीं हो गई थी। कई ज्योतिषों, प्राकृतिकविदों, भौगोलिक, शारीरिक, शिलालेखात्मक और लिखित सबूत आदि इस युद्ध का समर्थन करते पाए गए, जो इसकी वैधता को प्रमाणित करते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस शहर के कई हिस्सों में खुदाई कर रहा है और यहां के कई मंदिरों व स्मारकों का पता लगाया जा रहा है। हस्तिनापुर, जैन समुदाय के लोगों के लिए भी एक पवित्र स्थल है। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 16, 17 और 18 वें तीर्थंकर का जन्म यहीं हुआ था। इस शहर में हर वर्ष भारी संख्या में जैन श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है।

हस्तिनापुर और आसपास के क्षेत्रों में स्थित पर्यटक स्थल

जैसा पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि हस्तिनापुर, हिंदू और जैन, दोनों धर्मो के लिए पवित्र स्थल है। यहां कई पवित्र मंदिर जैसे-पंडेश्वर मंदिर, करण मंदिर और कमल मंदिर स्थित है। जैन समुदायों के लिए इस शहर में दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, जैन जम्बूदद्वीप मंदिर और श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर हैं। मंदिरों के अलावा, यहां अन्य रोचक जगह भी है जिनमें कैलाश पर्वत, अष्टपद और हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य शामिल है, जिसे 1986 में स्थापित किया गया था।

जैन जम्बूद्वीप मंदिर

जैन जम्बूद्वीप मंदिर, जैन साध्वी, परम पूज्य शिरोमणि ज्ञानमती माताजी के अथक और समर्पित प्रयासों की स्मृति में श्रद्धापूर्वक बनवाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि साध्वी ने 1965 में विंध्य पर्वतश्रेणी में भगवान बाहूवली की पवित्र मूर्ति के नीचे ध्यान लगाते हुए एक स्वप्न देखा, जिसमें उन्होने मध्यलोक-मिडिल यूनीवर्स के साथ तेरह द्वीपों को देखा। बाद में साध्वी द्वारा देखे गए स्वप्न को तिलोपन्नट्टी और त्रिलोस्कर जैसे जैन धर्म से जुड़े शिलालेख मिलने के बाद सच मान लिया गया, यह सभी शिलालेख लगभग 2000 साल पुराने थे। माना जाता है कि पहले जैन तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव ने भी ठीक यही स्वप्न देखा था। साध्वी ने सही स्थान देखने के लिए पदयात्रा (पैदल यात्रा) पूरे देश में शुरू कर दी, ताकि सवप्न में देखे गए स्थल को ढूंढा जा सके। अंत में वह हस्तिनापुर आ पहुंची, जहां उन्होने महसूस किया कि यह वह जगह है जो उनके द्वारा स्वप्न में देखी गई थी। इस मंदिर की आधारशिला 1974 में रखी गई थी, जो पूरी तरीके से 1985 में बनकर तैयार हुआ। वास्तव में, इस मंदिर की संरचनात्मक प्रतिनिधि को तीर्थांकरों की धार्मिक पुस्तकों में दुनिया के भूगोल में दर्शाया गया है। यहां 101 फीट ऊंचा सुमेरू पर्वत का केंद्र है और 250 फीट व्यास का जम्बूद्वीप है जो चार दिशाओं में चार क्षेत्रों में फैला है-पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण।

हस्तिनापुर अभयारण्य

हस्तिनापुर अभयारण्य को हस्तिनापुर नेशनल पार्क के नाम से भी जाना जाता है जहां प्रकृति के कुछ बेहतरीन नजारे देखने को मिलते है। इस अभयारण्य की स्थापना औपचारिक रूप से 1986 में की गई थी। यह अभयारण्य 2073 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है जो गंगा नदी के किनारे की दलदली भूमि पर स्थित है जहां कई प्रजातियों के पशुओं और जीवों का घर है, साथ ही साथ विशेष प्रकार की वनस्पति भी यहां पाई जाती है। एक अनुमान के मुताबिक, यहां 350 से भी ज्यादा की चिडियां है जिनमें पेंट स्टॉर्क, सारस क्रेन, ब्लैक एंड व्हाइट गर्दन वाले स्टॉर्क, रात में गाने वाली चिडियां, भारतीय सींग उल्लू, जंगली उल्लू, कठफोडवा, किंगफिशर, मधुमक्खी भक्षक और बुलबुल सहित अन्य चिडियां शामिल है। इस अभयारण्य में कई विशेष व अनोख जीव भी है। यहां कई स्तनधारी जीव, सरीसृप जिनमें सांप और बिच्छु, सेंटीपीड, मेढ़क और टोड, मछलियां और रंगरिंगी तितलियां शामिल है। मोर की कई प्रजातियां भी पाई जाती है। दुर्भाग्यवश, पार्क का प्राचीन वातावरण धीरे-धीरे नष्ट हो रहा है, औद्योगिक कब्जा करने वालों ने यहां कचरे, खनिज, पत्थर, कूड़ा-करकट आदि इतना ज्यादा फैला दिया है कि अभयारण्य में प्राकृतिक परिवेश का हनन हो रहा है।

कैलाश पर्वत

कैलाश पर्वत हिमालय पर्वतमालाओं में स्थित है जो जैन धर्म के लिए एक पवित्र स्थल है। ऐसा माना जाता है कि इसी जगह जैन धर्म के पहले तीर्थांकर भगवान ऋषभदेव ने मोक्ष की प्राप्ति की थी। वास्तव में, कैलाश पर्वत तक पहुचंना सभी साधारण श्रद्धालुओं के लिए संभव नहीं है, इसलिए जैन समुदाय ने हस्तिनापुर में एक आसान विकल्प तैयार कर लिया। यहां भगवान ऋषभदेव के जन्मस्थान पर इसकी प्रतिकृति का निर्माण किया गया ताकि सभी श्रद्धालु यहां तक दर्शन के लिए आराम से पहुंच सके। इसके अलावा, दूसरा पहलू यह भी है कि इस मंदिर का निर्माण अक्षय तृतीया के दिन करवाया गया था, इसी दिन भगवान श्री आदिनाथ ने अपने 13 महीने पुराने उपवास को गन्ने का जूस पीकर तोड़ा था। 131 फीट की ऊंचाई वाले पर्वत पर 11.25 फीट ऊंची भगवान ऋषभदेव की पद्मासन लगाए हुए मूर्ति स्थापित है। हस्तिनापुर में कैलाश पर्वत तीन चरणों में बना हुआ है। इसमें गोलाकर सीढियों पर 72 मंदिर स्थित है जो तीर्थंकरों के भूत, वर्तमान और भविष्य को दर्शाते है। प्रत्येक गोलाकर सीढी, एक विशेष काल के 24 तीर्थांकरों को दर्शाती है। इमारत की अनूठी विशेषता इसकी नजाकत, उत्कीर्ण फाटक, सजी हुई छत, खंभे और पैनल है।

कमल मंदिर

कमल मंदिर को लोटस मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कमल मंदिर, पौराणिक मंदिर जम्बूद्वीप मंदिर के परिसर में ही स्थित है। यह मंदिर छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत है जिसे फरवरी 1975 में बनवाया गया था। इस मंदिर में भगवान महावीर की मूर्ति स्थापित की गई है। इस मंदिर में हर साल हजारों श्रद्धालु, तीर्थयात्री और पर्यटक, दर्शन करने आते है। इस दौरान वह लोग पूजा में काफी दान-दक्षिण भी देते है। श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर या मांगने पर यहां आकर मिट्टी के दीए जलाते हैं और सोने के छत्र भी चढ़ाते है। यह मंदिर 101 फीट की ऊंचाई वाले सुमेरू पर्वत के नजदीक स्थित है। यहां के सबसे ऊंचे स्थल या शिखर तक 136 सीढियां चढने के बाद पहुंचा जा सकता है। सुमेरू पर्वत के ऊपरी हिस्से से जम्बूद्वीप के पर्वतों, नदियों, मंदिरों, बगीचों के अलावा शहर और आसपास के जंगलों का शानदार नजारा देखने को मिलता है। जैन शास्त्रों के अनुसार, सुमेरू पर्वत सबसे ज्यादा पवित्र पर्वत है और ब्रह्मांड का सबसे ऊंचा पर्वत है। सभी जैन तीर्थांकरों का इसी पर्वत पर अभिषेक किया जाता है। यही कारण है कि इस मंदिर में मॉडल को भी बनाया गया है।

हस्तिनापुर कैसे पहुंचे

जो पर्यटक हस्तिनापुर जाने का प्लान बना रहे है वह एयर, रेल और सड़क मार्ग, तीनों से आसानी से हस्तिनापुर तक पहुंच सकते है।

हस्तिनापुर की सैर का सबसे अच्छा समय

हस्तिनापुर की सैर का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का होता है। साल के बाकी महीने यहां काफी गर्म और शुष्क रहता है। हालांकि, एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल होने के नाते, हस्तिनापुर पर्यटकों को खासा लुभाता है। साल भर यहां पर्यटक विशेष त्यौहारों या अवसरों पर आते ही रहते है।

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