रांची : नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ (NUSRL), रांची में 19 और 20 मई को दो दिवसीय विधान निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम 2025 का आयोजन किया गया। उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष माननीय श्री रविंद्रनाथ महतो तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में माननीय श्री सुदिव्य कुमार, मंत्री, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग, झारखंड सरकार, और डॉ. सीमा कौल सिंह, निदेशक, ICPS, नई दिल्ली, उपस्थित रहे।
महत्वपूर्ण सहयोग की शुरुआत – ICPS और NUSRL के बीच MoU
कार्यक्रम के दौरान संवैधानिक एवं संसदीय अध्ययन संस्थान (ICPS), नई दिल्ली और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ, रांची के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर भी किए गए। इस MoU का उद्देश्य विधायी प्रशिक्षण, नीति निर्माण और शोध के क्षेत्रों में संस्थागत सहयोग को बढ़ाना है।
कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) अशोक आर. पाटिल ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय की समाज और कानून के क्षेत्र में हो रही पहलों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के विभिन्न केंद्र राज्य सरकार के कई विभागों के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं, और भविष्य में इस सहयोग को और भी गहरा करने की उम्मीद जताई।
दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में झारखंड विधानसभा के अधिकारी, पुलिस अधिकारी और विश्वविद्यालय के छात्र शामिल हुए। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य विधायी प्रारूपण (Legislative Drafting) की जटिलताओं और उसकी मूलभूत आवश्यकताओं को समझाना है। इस दौरान देश भर से विशेषज्ञ, विधि निर्माता और प्रोफेसर प्रशिक्षण सत्रों का संचालन कर रहे हैं।
डॉ. सीमा कौल सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि विधायी प्रारूपण एक ऐसा कौशल है जिसे सीखा जा सकता है। उन्होंने कानून की स्थिरता के साथ समयानुसार बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि कानून का शासन तभी सार्थक होता है जब वह आम जन के जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करे। उन्होंने इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रमों को शैक्षणिक और व्यावहारिक ज्ञान के बीच सेतु बताया।
माननीय श्री सुदिव्य कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, “जो लोग कानून की पढ़ाई चुनते हैं, वे समाज की सबसे मूलभूत सेवा का चयन करते हैं।” उन्होंने इस कार्यक्रम की गंभीरता और उपयोगिता की सराहना की और कहा कि सरकार को विश्वविद्यालय के सहयोग से कानून को और अधिक प्रभावशाली और जनहितैषी बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
मुख्य अतिथि श्री रविंद्रनाथ महतो ने अपने वक्तव्य में विधायी प्रारूपण की गुणवत्ता पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि “खराब प्रारूपित कानून मुकदमों की ज़मीन तैयार करता है, जबकि अच्छा प्रारूपित कानून न्याय की नींव बनता है।” उन्होंने विधि निर्माण में उद्देश्य की स्पष्टता और भाषा की सरलता को आवश्यक बताया।
कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी श्री अभिनव गुप्ता (सहायक प्रोफेसर) ने साझा की, जबकि उद्घाटन सत्र का समापन डॉ. वागीश उपाध्याय (सहायक प्रोफेसर) के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
आगामी सत्रों में जिन प्रमुख विषयों को शामिल किया जाएगा उनमें हैं — विधायी प्रारूपण की विधियाँ एवं नियम, संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या, विधायी दस्तावेजों की संरचना, प्रारूपण में नैतिक दृष्टिकोण, तथा आपराधिक विधि प्रारूपण में P5 दृष्टिकोण। विशेषज्ञों के रूप में श्रीमती मुकुलिता विजयवर्गीय, डॉ. असद मलिक, डॉ. प्रदीप कुलश्रेष्ठ, और डॉ. रवीन्द्र कुमार पाठक सहित कई गणमान्य लोग अपने विचार साझा करेंगे।
This post has already been read 108 times!