भारतीय ज्ञान परंपरा मूल्यपरक और कृत्रिम मेधा व्यावसायिक है:डॉ जंग बहादुर पाण्डेय

Ranchi: राजकीय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय देवघर में इंडियन नॉलेज सिस्टम एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (भारतीय ज्ञान परम्परा और कृत्रिम मेधा) विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।संगोष्ठी के मुख्य वक्ता रांची विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो (डॉ) जंग बहादुर पाण्डेय ने कहा कि मनुष्य की चार मौलिक आवश्यकताएं हैं -भोजन, वस्त्र, आवास और शिक्षा।क्रम से तो शिक्षा चौथे नंबर पर है, लेकिन गुणवत्ता और महत्व की दृष्टि से शिक्षा प्रथम पद की अधिकारिणी है। भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को प्रबोधते हुए कहा कि ज्ञान संसार में पवित्रतम् तत्व है।भारत केवल क़ृषि प्रधान देश नहीं, अपितु ऋषि प्रधान देश रहा है। ऋग्वेद विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है।भारतीय ज्ञान परंपरा नैतिकता और मूल्य परक रही है;जबकि कृत्रिम मेधा व्यावसायिक और रोजगार परक रही है।भारत के विश्व गुरु बनाने का आधार ज्ञान परक था। भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी बराबर कहा करते हैं कि भारत युवाओं का देश है।भारत की 65% आबादी युवा है।डा पाण्डेय ने कहा कि युवा को उलटने पर वायु शब्द बनेगा। अर्थात् ‌‍,युवा इस देश की प्राण वायु है। युवाओं के पास जोश है और बुजुर्गो के पास जोश है।आज के युवा अपने जोश के साथ बुजुर्गों के होश को मिला दें,तो उनका विकास अवश्यसंभावी हो। 1947 में विकसित भारत का सपना तब अपना हो सकेगा जब हमारे युवाओं के एक हाथ में पुस्तक और दूसरे हाथ में कम्प्यूटर/या मोबाइल हो। पुस्तक भारतीय ज्ञान का प्रतीक और कम्पूयटर कृत्रिम मेधा का प्रतीक है।राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह ने अपने सुप्रसिद्ध उपन्यास राम रहीम में लिखा है कि-शिक्षा का अर्थ किसी भाषा का मनन नहीं अपितु चरित्र का गठन है।आज के युवाओं को पुनः ज्ञान परंपरा से जुड़ना होगा।विशिष्ट अतिथि के लिए में देवघर के पुलिस उपाधीक्षक व्यंकटेश कुमार ने कहा कि हमें दोनों में संतुलन बनाकर चलना चाहिए।तभी 1947में विकसित भारत का सपना साकार हो सकेगा। रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के शोध छात्र लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि एक आदर्श शिक्षक को समयनिष्ठ, अध्ययनशील और अनुशासन प्रिय होना चाहिए।

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