-यज्ञ शर्मा- हिंदुस्तान को आजाद हुए साठ से ज्यादा साल हो गये। लेकिन, अी तक हिंदुस्तानी लोग अपने नेताओं को समझे नहीं हैं। नेता ने कीमती जमीन अपने बेटे को दे दी। लोगों को इसमें बेईमानी नजर आ रही है। यह जनता की नजर का दोष है। अगर, जनता की नजर सही होती तो उसे इसमें जिम्मेदारी और भरोसा नजर आते। जरा सोचिए, नेता ने जो जमीन अपने बेटे को दी वह किसकी है? सरकार की! और, सरकार किसकी है? नेता की! तो अपनी जमीन, अपने बेटे को दे कर…
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तमिल कुल के राघव थे अद्भुत हिंदी लेखक
रांगेय राघव का रचना संसार इतना विस्तृत है कि उनकी तुलना सिर्फ राहुल सांस्कृत्यायन से की जा सकती है। कथाकार, बुद्धिजीवी राजेंद्र यादव ने एक बार कहा था कि रांगेय राघव की तुलना हिंदी संसार में सिर्फ राहुल जी (राहुल सांकृत्यायन) से की जा सकती है लेकिन उन्हें तो उम्र भी बहुत मिली थी। रांगेय राघव ने मात्र 39 साल की उम्र में उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, रिपोर्ताज जैसी विविध विधाओं में करीब 150 कृतियों को अंजाम दिया। उनकी लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल था कि सुबह यदि वे आद्यैतिहासिक…
Read Moreव्यंग्य: रोने का राज
-राजकिशोर- वह सड़क के किनारे एक बेंच पर बैठा पर रो रहा था। मैंने सोचा, या तो कोई मर गया होगा या उसकी प्रेमिका ने उसे धोखा दिया होगा। यह भी हो सकता है कि भूमंडलीकरण की आंधी में उसकी कई साल पुरानी नौकरी सूखे पत्ते की तरह उड़ गई हो। आजकल जैसा समय चल रहा है, उसमें रोने के हजार कारण हो सकते हैं। फिर भी मुझसे रहा न गया। वह जिस तरह फूट-फूट कर रो रहा था, उसे देखते हुए कोई रुके भी नहीं और उसे सांत्वना भी…
Read More(कहानी) नेकी का हिसाब
-मुकेश शर्मा- दोपहर के साढ़े तीन बज गये हैं। सरकारी दफ्तर में गहमा-गहमी बनी ही हुई है। सबको अपने काम की जल्दी पड़ी हुई है। साहब के कमरे के बाहर नेमप्लेट लगी है, युधिष्ठर लाल, तहसीलदार। स्टाफ के लोग और विजिटर उनके कमरे में आ-जा रहे हैं। थोड़ी देर बाद कुछ फुर्सत मिल गयी, तहसीलदार साहब ने तुरन्त रीडर को बुलवा लिया। आज सात रजिस्ट्रियों पर साइन किये हैं मैंने… तहसीलदार साहब ने मन ही मन कुछ हिसाब लगाते हुए कहा। यस सर, बस सर दे ही रहा हूं एक…
Read More(कहानी) तिलिस्म: अपन-अपने
मम्मी, मम्मी आज तो मेली हौलिदे है। मैं आपकी हेल्प कलूंगा। और दो नन्हीं सी बाहें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपट गयीं। गैस धीमी कर मैंने नन्हें आशू को गोद में उठाकर प्यार किया, अरे वाह! और मेरा राजा बेटा मेरी क्या हैल्प करने वाला है, बताये तो जरा! -नहीं मम्मी। मैं तो आशू से बड़ी हूं, आज मैं आप वाले स्पेशल काम के लिये बिल्कुल रेडी हूं। यह गौरी की आवाज थी, और अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल गयी। कहीं यह इसी हेल्प करने की योजना ही तो…
Read Moreव्यंग्यः तुम आदमी हो या…
-विजय कुमार- शर्मा जी को हम सबने मिलकर एक बार फिर ‘वरिष्ठ नागरिक संघ’ (वनास) का अध्यक्ष चुन लिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वर्मा जी ने उनकी झूठी−सच्ची प्रशंसा के पुल बांधे और बाबूलाल जी ने उन्हें माला पहनायी। शर्मा जी ने सबको धन्यवाद दिया और फिर परम्परा के अनुसार उनकी ओर से भव्य चाय−नाश्ता हुआ। हमारे मोहल्ले के बुजुर्गों की यह संस्था कई साल पुरानी है। आप जानते ही हैं कि बुजुर्गों को अपने अनुभव बिना मांगे दूसरों को देने की बीमारी होती है। भगोने में उबलते दूध…
Read Moreवैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में अच्छी किताब (पुस्तक समीक्षा)
-फ़ज़ल इमाम मल्लिक- अंबरीश मिश्र इंडियन आयल में कार्यरत हैं। हाल ही में उनकी एक पुस्तक पढ़ने का इत्तफ़ाक़ हुआ। साहित्य में उनका नाम बहुत जाना-पहचाना नहीं है। उनकी रचनाएं पहले कभी कहीं पढ़ी नहीं न ही नजर से गुज़रीं। हो सकता है कि पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहीं हों लेकिन उनकी रचनात्मकता से कम से कम मेरा साबक़ा नहीं पड़ा था। इंडियन आयल में कार्यरत छायाकर मित्र एन. शिवकुमार ने मुझे यह अंबरीश कुमार के संस्मरणों का संग्रह ‘तेल अनुसंधान सुगंध’ भेजा था। पुस्तक के नाम ने…
Read More(कहानी) पियारा बुआ
-भैरव प्रसाद गुप्त- उस दिन सुबह की सफ़ेदी अभी धपी भी नहीं थी कि इमली-तले के तीनदरे से पियारा बुआ के रेघा-रेघाकर रोने की आवाज़ सारे मोहल्ले में गूंज उठी। रुलाई में ऐसा दर्द कि पिछले पहर के नींद में माते सन्नाटे का सीना चाक-चाक हो रहा था। आदमियों की नींद तो हवा हो ही गयी, इमली पर बसेरा लेनेवाले पंछी और उसके नीचे खूंटों से बंधे हुए चौपाये भी ऐसे चीखने और डकराने लगे कि जैसे यह दर्द उनसे भी सहा न जा रहा हो। और सब के ऊपर…
Read Moreअब (पंजाबी कहानी)
-महिन्दर जीत- इकबाल की पतंग फट गई तो वह कॉप और अड्डे से कागज छुड़ाकर तीन कमान बना रहा था। तब इकबाल बहुत छोटा था। मां ने देखा तो बोली, नोकीली चीजों से नहीं, खेलते बेटे…. किसी की आंख में तीली लग गई तो, गजब हो जायेगा… ला तेरे लिए झण्डा बना दूं। झंडा बनाकर इकबाल के हाथ में पकड़ाती हुई फिर वह बोली, इनकलाब जिंदाबाद! इकबाल भी बोला उठा इनकलाब जिंदाबाद! और गली की ओर भाग गया। झंडा उसके हाथ में था। यह आजादी के पहले की है। उन…
Read Moreतबियत का शायर (पुस्तक समीक्षा)
कृति – चौमास विधा – कविता कवि – राजगोपाल सिंह प्रकाशक – अमृत प्रकाशन मूल्य – 100 रुपए गीत की लय और गजल की नाजुक बयानी के महीन धागे जहां बिना कोई गांठ लगाए एक-दूसरे से जुड़ते हैं, वहीं से उठती हैं कवि राजगोपाल सिंह की रचनाएं। गीत और गजल के पिछले चार दशक के सफर में राजगोपाल सिंह ऐसे बरगद के पेड़ हैं, जिनकी छांव में हरेक गीत और गजल सुनने वाला और कहने वाला जरूर कुछ पल सुस्ता कर आगे बढ़ा है। यूं तो गजल कहने के बारे…
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