सद्भावना के लिए आवश्यक है चरित्र। सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता ही चरित्र है। जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हैं, उन्हीं को चरित्रवान कहा जा सकता है। संयत इच्छाशक्ति से प्रेरित सदाचार का नाम ही चरित्र है। चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। जीवन में सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र ही है। चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार और सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग हैं, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित-व्यवस्थित जीवन, शांत-गंभीर…
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शिव ने बनाया जीवन को मधुमय
-श्री श्री आनन्दमूर्ति- सामाजिक क्षेत्र में मनुष्य के बीच जो व्यवधान था, उसे समाप्त कर मानवता के कल्याण के लिए शिव हमेशा प्रयत्नशील रहे। कोमलता व कठोरता के प्रतीक शिव ने मनुष्य को जो सबसे बड़ी वस्तु दी है, वह है धर्मबोध। इस कारण शिव ने मनुष्य को अंतर जगत में ईश्वर की प्राप्ति का रास्ता दिखाया। वह रास्ता परम शांति का रास्ता है। शिव के इसी पथ को शैव धर्म कह कर पुकारा जाता है। शिव ने देखा था कि उस ऋग्वेदीय युग में छंद थे, किन्तु राग-रागिनियों की…
Read Moreआजमाएं गुस्से को छूमंतर करने के लिए ये लाजबाव उपाय
कहते हैं क्रोध बुद्धि को खा जाता है, यह बात कई लोग जानते हैं फिर भी क्रोध करते हैं और बेवजह अपना और अपने साथी को परेशान करते हैं। वैसे अगर आपको कभी गुस्सा आ भी जाए तो इन उपायों से आप अपने गुस्से को काबू में रख सकते हैं। अमूमन देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति गुस्सा होता है तो उसके आस-पास का माहौल भी प्रभावित होता है। ऐसे में अगर आपको गुस्सा आ रहा हो तो एकांत मे चले जाइए और उस समस्या के बारे में एक…
Read Moreवाणी पर संयम आवश्यक
मनुष्य जीवन में मौन, मन की एक आदर्श व्यवस्था है। मौन का भाव है, मन का निस्पन्द होना। मन की चंचलता समाप्त होते ही मौन की दिव्य अनुभूति होने लगती है। मौन मन का एक दिव्य अलंकार है, जो इसके स्थिर हो जाने पर सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। मौन से मानसिक ऊर्जा का क्षरण रोककर इसे मानसिक शक्तियों के विकास एवं वर्ध्दन में नियोजित किया जाना सम्भव है। मौन मन को ऊर्ध्वमुखी बनाता है तथा इसकी गति को दिशा विशेष में तीव्र कर देता है। विवादों से…
Read More10 फरवरी बसन्त पंचमी पर विशेष: शरद ऋतु की विदाई का पर्व है बसन्त पंचमी
बसन्त पंचमी एक प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा सम्पूर्ण भारत में बड़े उल्लास के साथ की जाती है। इस दिन स्त्रियां पीले वस्त्र धारण करती हैं। बसन्त पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। शांत, ठंडी, मंद वायु, कटु शीत का स्थान ले लेती है तथा सब को नवप्राण व उत्साह से स्पर्श करती है। यह विद्यार्थियों का भी दिन है, इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की पूजा आराधना भी की जाती है। बसन्त ऋतु तथा…
Read Moreकामनाओं पर विजय
-आचार्य शिवेंद्र नागर- सुबह एक-डेढ़ घंटे पार्क में आसन-प्रायाणाम करने को ही लोग योग मानते हैं, किंतु योग इतना भर नहीं, अपितु अपने मन की कामनाओं को ज्ञान की लगाम से सही दिशा और दशा देना है.. यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया। यत्र चैवात्मनात्मनं पश्यन्नात्मनि तुष्यति।। श्रीमद्भगवद्गीता के इस श्लोक का अर्थ है कि योग के अभ्यास से निरुद्ध (बांधा हुआ) चित्त ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है, जहां वह सभी विषयों से हटकर आत्मा द्वारा आत्मा को देखकर स्वयं में ही संतुष्ट हो जाता है। योग के अभ्यास का प्रमुख…
Read Moreप्रह्लाद के गुरु का साधना-स्थल
पूरे देश में महादेव के नौ नाथ की उत्पत्ति-कथा और माहात्म्य बड़ी श्रद्धा से कहे-सुने जाते हैं। ऐसा ही एक शिवालय बिहार के गया क्षेत्र के फतेहपुर अंचल में है, जिसे संडेश्वर नाथ महादेव के नाम से जाना जाता है और उसकी गिनती मगध के नौ नाथों में पहले स्थान पर की जाती है। प्राचीन मगध राज्य की प्रारंभिक राजधानी राजगीर से चार कोस दक्षिण और मोक्ष नगरी गया से तीन कोस पूरब में ढाढर नदी के किनारे स्थित बाबा संडेश्वर नाथ का यह स्थान देश के नौ नाथ मंदिरों…
Read Moreभक्तराज अंबरीश की रक्षा करता था सुदर्शन चक्र
भक्तराज अम्बरीश महाराज नागभाग के पुत्र थे। वे सप्त द्वीपवती पृथ्वी के एकमात्र सम्राट थे। संपूर्ण ऐश्वर्य के अधीश्वर होते हुए भी संसार के भोग पदार्थों में उनकी जरा भी आसक्ति नहीं थी। उनका संपूर्ण जीवन भगवान की सेवा में समर्पित था। जो अनन्य भाव से भगवान की भक्ति प्राप्त कर लेता है, उसके योग क्षेम का संपूर्ण भार भगवान अपने ऊपर ले लेते हैं। इसीलिये महाराज अम्बरीश की सुरक्षा के लिए भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को नियुक्त किया था। सुदर्शन चक्र गुप्त रूप से भगवान की आज्ञानुसार महाराज…
Read Moreसुखी जीवन का उपहार
ज्ञान बांटने से बढ़ता है। यदि इसे आप अपने तक ही सीमित रखेंगे तो यह खत्म हो जाएगा। अब कैसे इस ज्ञान को फैलाना है, इसके लिए निपुणता की आवश्यकता है। कई लोग ऐसे हैं, जिनके जीवन में मन की गहराई और सच्चाई (लगन) का नाम नहीं। लोगों को इस तथ्य से अवगत कराना आप पर निर्भर है। इसीलिए सत्संग का विधान है। सत्संग मतलब सत्य का साथ। आम आदमी के लिए सब कुछ सीखना संभव नहीं। मगर आप ऐसा कुछ सीख सकते हैं जिससे आप सब कुछ जान सकते…
Read Moreधन और ज्ञान मात्र संग्रह ही नहीं, सदुपयोग भी जरूरी है
एक गांव में धर्मदास नामक एक व्यक्ति रहता था। बातें तो बड़ी ही अच्छी-अच्छी करता था पर था एकदम कंजूस। कंजूस भी ऐसा वैसा नहीं बिल्कुल मक्खीचूस। चाय की बात तो छोड़ो, वह किसी को पानी तक के लिये नहीं पूछता था। साधु-संतों और भिखारियों को देखकर तो उसके प्राण ही सूख जाते थे कि कहीं कोई कुछ मांग न बैठे। एक दिन उसके दरवाजे पर एक महात्मा आए और धर्मदास से सिर्फ एक रोटी मांगी। पहले तो धर्मदास ने महात्मा को कुछ भी देने से मना कर दिया लेकिन…
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